लेखनी कविता -09-Mar-2022 वार्षिक प्रतियोगिता हेतु - आम आदमी
आम आदमी की बिसात बस इतनी सी ,
लगता है कभी वह एक उपाधि सी |
सुगबुगाहट होती हैं चारों तरफ उसी की ,
चुनावों में भी खलती हैं उसकी कमी सी |
एक व्यक्ति का तमगा होता आम आदमी ,
भावों का भी देता हैं दाम आम आदमी |
परिचित कोई दिखता ही नहीं अब ,
मर्यादा की पहचान थे पुरुषोत्तम राम भी |
गरीब , शोषित , मजदूर हैं आम आदमी ,
हताश , निराश , मजबूर हैं आम आदमी |
सामंजस्य और विश्वास करके जीता वह ,
प्रताड़ित बड़ा आत्मसात हैं आम आदमी |
अधिकारों का हनन उसके होता ,
रेल की पटरी पर भी कभी वो सोता ,
कर्तव्य का बोझ ढोता आम आदमी ,
इंसाफ के लिए तड़पता आम आदमी |
सब कहे प्रश्न करने वाला वो होता कौन ?
खास बनने की चाहत रखने वाला ,
आम आदमी आखिर होता कौन ?
अंतर बड़ा ही जरा सा खास और आम में ,
नाजुक बड़ा बनने वाला वो होता कौन ?
ठेस जो भावनाओं को लग जाए उसके ,
परिवार को जब कोई सताए उसके |
खून पसीने की तरह बह जाए उसका ,
फूलों की तरह दिल मसला जाए उसका |
खास का तो राज हो जाए हर जगह ,
आटे, नमक ,दाल के भाव भी बताए ,
वो होता आम आदमी |
वोट देकर सरकार बनाए फिर भी ,
चूसकर निचोड़ कर फेंक दिया जाए ,
वो होता आम आदमी |
शिष्टता और सभ्यता की मिसाल हो जिसमें ,
वो होता आम आदमी ,
सच्चाई , ईमानदारी , नादानी का नाम ,
वो होता आम आदमी |
भोला हैं पर मूर्ख नहीं हैं आम आदमी ,
माना इंसान है वो भी भगवान नहीं ,
पर फिर भी खेलने का सामान तो ,
नहीं होता आम आदमी ||
वार्षिक प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Seema Priyadarshini sahay
10-Mar-2022 05:30 PM
बहुत बेहतरीन
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Lotus🙂
10-Mar-2022 01:01 PM
Nice
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Gunjan Kamal
09-Mar-2022 01:48 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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